रनिया भिखारीन।
रनिया भिखारीन।
– आचार्य रामानंद मंडल
कहीं से आके एगो भिखारीन प्रखंड मुख्यालय गोपालपुर बस स्टैंड में रहे लागल।वो दुधिया गोर रंग के पचीस बरस के युवती रहे।दुबर पातर शरीर रहे।वो वांया अंग से पोलियो ग्रस्त भी रहे।वाया पैर से थोड़ा घिसिया के चले त बायां हाथ भी झूलैत रहे।वो बस स्टैंड में के होटल सभ मे मांग के खाइत रहे।
हम स्थानीय वित्त रहित इण्टर कॉलेज में डिमान्सट्रेटर रही। बस स्टैंड के बगल में भाड़ा के मकान में रही। कालेज आइत जाइत हम वोकरा देखी।बस स्टैंड के किनारे भूइयां पर फाटल चिटल गुदरी पर कभी परल त कभी बैठल रहे। कभी कोनो होटल पर खाना लेल खड़ा रहे।होटल वाला वोकरा खाना देबे त वोही जमन बैठ के खा लेबे आ कल पर जा के पानी पी लेबे।
एक बात और रहे जे वो साफ सुथरा से रहे।बस स्टैंड के बगल में के पोखरी में नहाय आ कपड़ा भी खीच लेबे। किराना दुकानदार से साबून भी मांग लेबे।बस स्टैंड के सभ दुकानदार वोकरा से सहानुभूति रखे। दुकानदार सभ वोकरा रनिया कह के पुकारे।
एक दिन वोकरा बस स्टैंड में लागल खाली बस से उतरैत देखली। हमरा आश्चर्य लागल।हम जै होटल में खाइ,वोइ होटल वाला मनोहर के इ बात कहली।त वो कहलक – हं। दयानंद बाबू।रनिया बस में झांरू मारै छैय।बस के साफ कै दैय छैय त कंडक्टर वोकरा कुछ पैसा दे देइ छैय।
कुछ दिन बाद देखै छी कि रनिया में शारीरिक परिवर्तन आ रहल हैय।वोकर शरीर धीरे धीरे फुलल जा रहल हैय।गाल लाल लाल होके उभर रहल हैय।छाती के उभार भी उन्नत हो रहल हैय।केश भी खोल ले कमर तक लटकै ले रहल हैय।होठ पर मुस्कान रहै हैय। कुछ अजीब पन हमरा लागे लागल।
कुछ और दिन बाद वोकरा पेट में उभार देख ली।
हम फेर होटल वाला मनोहर के रनिया के बारे में बतैली।त होटल वाला मनोहर कहलक-इ सभ बस के कंडक्टर के करदानी हैय। कंडक्टर रनिया के यौन शोषण करे छैय।परंच रनिया के मन लगै छैय।
हम कहली-कि कंडक्टर रनिया के संगे बलात्कार न त कैले हैय।
होटल वाला मनोहर कहलक-कंडक्टर बलात्कार न कैले हैय।हम सभ बस स्टैंड में रहै छी। बलात्कार करितै त रनिया हो हल्ला जरूर करितै आ हमरा सभ के जरूर बतै तैय।बस स्टैंड के सभ दूकानदार सभ रनिया के मानै छैय। कंडक्टर रनिया के फुसला के आ बस मे लागल भीसीपी से एडल्ट फिल्म देखा के नारी गत कामवासना के जगा के यौन शोषण करै छैय। रनिया के जवानी आ वोकर शारीरिक भूख के फायदा कंडक्टर उठा रहल हैय।देखैय न छियै रनिया आबि केते खुश रहै हैय। केते खिलल खिलल रहे हैय।
रनिया के पेट काफी बढ़ गेल।बस स्टैंड में खुसर फुसर होय। स्थानीय पुलिस दारोगा, संभ्रांत लोग सभ देखे बतिआय परंच विरोध में कुछ न बोले।
नव महिना पुर गेल। रनिया खुब सुंदर गोर लैइका के जनम देलक।आबि वो माय बन गेल। कोई महिला कोतुक बश लैइका के मांगे त वो लैइका के वोकरा न देबे।हर समय बच्चा के पहरा दैत रहै।
एगो नारी जौं माय बनै छैय त वो सिरफ माय होय छैय।चाहे वो बच्चा प्रेम के होय!कि यौनशोषण से होय! आ कि बलात्कार से होय! कि बैध हो!कि अबैध हो!
आइ जौं कि अविवाहित माय समाज के डर से अपना बच्चा के फेंक दैय छैय!मार दैय छैय।परंच रनिया अपना बच्चा के प्यार करै छैय।भले वो बच्चा अबैध भेल होय।
परंच रनिया के बच्चा रनिया के शरीर के हिस्सा लगैय।हर समय बच्चा के निघारैत आ चुम्मैत रहैत रहे।त कभी स्तनपान करवैत रहैत रहे।
रनिया में मां के रूप सत्य, वात्सल्य शिव आ ममता सुन्दर लगै छैय। रनिया आइ पूर्ण नारी लगैय हैय। रनिया आइ भिखारीन नै रानी लगैय हैय।
रनिया आबि बस स्टैंड छोड़ के कहीं दोसर जगह चलि गेल।
स्वरचित © सर्वाधिकार रचनाकाराधीन
रचनाकार-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सीतामढ़ी।