रदीफ़-में
डुबाकर मन के भावों को, तर करके स्याही में।
लिखी थी खत कभी,मैंने थी जो तनहाई में।।
वो तिरे भींगे केशों की, थी जो खुशबू रुहानी में।
तिरे सुर्ख वो लबों की, छुअन की उस खुमारी में ।
गौर फरमाएं
कैसी लगी
जरूर बताएं
एक नये विषय पर पहल
प्रेमी की वेदना