रणभेरी
सुनाई देती है रणभेरी प्रभो आकर वतन को बचालो
टूट रही है सांसे अपनों की प्रभो आकर ं इन्हें बचालो
पलट कर देखिये वो अस्तपाल जो बदल रहे शमसानों में
छिड़ गया गृहयुद्ध घर में जब नायक जा बैठे है मसानों में
बीच फुटपाथ जन्म दे रही माँ आ प्रभो तुम इनको संभालो
भटक रही है इधर उधर देश की जो है कर्मठ श्रम शक्ति
प्रान पड़े हो जब संकट में तो दिखाए वे कैसी भक्ति
दूर है बसेरा इनका आ प्रभो घर इन्हें पहुँचा द़ो
जूझ रहे कोविड 19 से युद्ध को भी हमने मिल झेला है
जीतेंगे तो हम ही साथ अपने एक सौ तीस करोड़ रेला है
अपनी इस अनुपम कृति को नापाकों से प्रभो बचालो