रचो महोत्सव
रचो महोत्सव प्रीत का, फैले है बहुरंग ।
मैं बन जाऊँ राधिका,मिले श्याम का संग।।
गोरे गोरे अंग पे, चढ़ा श्याम का रंग।
मन रंगीला उड़ चला, जैसे उड़े पतंग।।
सतरंगी सी अंग पर, चूनर है पचरंग ।
तन में बजती बांसुरी, मन में बजे मृदंग।।
भक्ति-भावमय प्रेम का, मन में उठे तरंग।
तब से सिंचित हो गये,कोमल निर्मल अंग।
लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली