रागी के दोहे
रचना सृजन तिथि –
04-09-2024
🌹शीर्षक 🌹
✍️ संस्कृत सुता हिन्दी (रागी के दोहे)✍️
भारत में पावन हुई, गूंजा हिन्द हुंकार।
प्रीति हृदय से कर रही, संस्कृत सुता पुकार।। १ ।।
मृदुल तरंग बिखेरती, जस निर्मल जल-धार।
वाणी हिन्दी में निहित, मिलता मां का प्यार।। २ ।।
करतल विभिन्न छंद लिए, सिर रस है शृंगार।
मात्राओं से सज रही, तन सर्वालंकार।।३।।
राग मिलन की गा रही, करति परस्पर प्रेम।
हिन्दी संस्कृत की सुता, मंत्रों द्वारा खेम।।४।।
ग्यारह स्वर तैंतीस हैं, व्यंजन इनके जान।
अयोगवाह द्वि सारथी, हिन्दी बनी महान।।५।।
विश्व-धरा पर हो रही, प्रचलित इसकी सार।
सीख रहे अंग्रेज वही, हिन्दी हिन्द का प्यार।।६।।
हिन्दी की महिमा अलख, अलख हुआ सद्ज्ञान।
वसुंधरा की गोद में, हिन्द धरा सम्मान।।७।।
बचपन से ही साथ है, आजीवन हो साथ।
भाईचारा सबल हो, जुड़े हाथ से हाथ।।८।।
ममता की सागर बनीं, बनीं प्रीत की डोर।
जग में फैली कीर्ति है, हिन्दी की सब ओर।।९।।
“रागी” पुलकित हो रहे, गा हिन्दी के गान।
गैर देश में बढ़ रहा, है हिन्दी का मान।।१०।।
🙏 कवि 🙏
राधेश्याम “रागी”
कुशीनगर उत्तर प्रदेश