रचना: लोकतंत्र का काला दिन
लोकतंत्र क्यूँ आज
खून कि आंसू रो रहा है,
तानाशाह निरंकुश शासन
संविधान का कोई मोल नहीं हैं।
शिक्षा है अधिकार हमारा
मांगे तो लाठी बरसाए रहे हैं,
अधिकारों का हो रहा है हनन
चौथा स्तम्भ भी गोदी मे पल रहे हैं।
शब्दों के अर्थ रहे हैं बदल
रक्षक अब भक्षक बन रहे हैं,
मांग रहे हैं नि:शूल्क शिक्षा
देशद्रोही क्यूँ बताए रहे हैं।
लोकतंत्र का काला दिन
विद्वतगण बताए रहे हैं,
जहां अधिकारों का कोई मूल्य नहीं है
क्या इसी नवभारत की सोच रहे हैं ।
राजन कुमार साह ” साहित्य “