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22 Aug 2021 · 3 min read

— रक्षा सूत्र बंधन–

रक्षा सूत्र बंधन
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रक्षा बंधन भारत के प्राचीनतम त्यौहारों में से एक ऐसा पर्व है जो कि सनातन काल से मनाया जा रहा है।
ऐसा माना जाता है राजसूय यज्ञ के समय द्रौपदी ने श्री कृष्ण को अपने आँचल का टुकड़ा बाँध कर अपने कठिन समय में सहायता करने का
आशीर्वाद प्राप्त किया था और बदले में श्री कृष्ण ने दु:शासन के चीरहरण के समय उनको वस्त्र से ढाँप कर उनको अपमानित होने ले बचाया था और स्त्री सम्मान की रक्षा की थी।

इसका प्रारंभ आदि काल में ऋषि मुनियों द्वारा भी बताया जाता है।वे प्रतिवर्ष चातुर्मास के प्रारंभ होने पर अपने क्षेत्र के राजा के पास जाते थे और उनको रक्षा सूत्र बाँध कर अपने लिये सुरक्षा मांगते थे कि उनके हवन और तपस्या के एकांतवास का चातुर्मास निर्विघ्न पूर्ण हो जाये।संभवत: इसलिये यह श्रावण मास की पूर्णमासी को मनाया जाता है।
वैदिक काल में वेद पाठी ब्राह्मण इस दिन से यजुर्वेद का पाठ शुरू करते थे।

समय के साथ यह प्रथा राजपुरोहितों में हस्तांतरित हो गई।वे राजा के न केवल मुख्य सलाहकार होते थे अपितु अप्रत्यक्ष रूप से शासन के प्रमुख निर्णयों में उनकी सक्रिय भागीदारी होती थी।क्योंकि कि ऋषि मुनियों की कालांतर तपोस्थली कमतर होती गईं और आर्थिक महत्व के वर्चस्व को प्रमुखता मिलने के कारण सब राजाश्रय चाहने लगे।

जब राजाओं की सीमायें आपसी बंटवारे के कारण संकुचित होने लगी तो पुरोहितों की शक्तियां कम होने लगीं।पुरोहित भी राजा का एक ही हो सकता था शेष पुरोहित धनकुबेरों पर आश्रित हो गये जो उनको आर्थिक संरक्षण के समाजिक संरक्षण भी प्राप्त होता रहा।जैसे जैसे परिवार बढ़ते गये और समाज के विस्तार ने राजपुरोहित से पुरोहित फिर पुरोहित से पंडित और ब्राह्मण तक का रास्ता तय करते हुये रक्षा सूत्र सामान्य यजमान तक पहुंच गया।आज भी पुराने लोग अपने कुलपुरोहितों से रक्षा सूत्र बँधवा कर उनको अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देते हैं।सभी शुभ कार्यों की शुरुआत में आपने पंडितों को यजमान के हाथ में कलेवा बाँधते देखा होगा यह रक्षा सूत्र का प्रतीक ही है।

लोकाचार के अनुसार घर की बेटियां सावन मास में अपने मायके में आकर रहती हैं जिससे परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है।बेटियों को सावन मास पर घर में बुलाने के लिये बहनों द्वारा अपने भाइयों को समय पर उनकी रक्षा करने के लिये उनको रक्षा सूत्र बंधन करने लगीं।इसका दोहरा समाजिक प्रभाव होता है ;एक तो परिवार में समरसता बड़ती है दूसरा बेटी को घर बुलाने के लिये ससुराल पक्ष को प्रार्थना नहीं करनी पड़ती और बहन भाई का त्यौहार मनाने के लिये भेजना ही पड़ता है।यह हमारे पूर्वजों द्वारा समाज को एक सूत्र बांधने का दूरदर्शिता और विवेकपूर्ण सोच है जिससे हमारा समाज आज भी टिका हुआ है।पर पिछले दो दशकों में स्मार्ट फोन के उद्भव से यह तिलिस्म टूट रहा है।आज की युवा पीढ़ी विभिन्न ‘वाद’ और पश्चिमी सभ्यता के दुष्प्रभाव से अपनी सभ्यता;संस्कृति और परंपराओं से विमुख हो रहा है।

आजकल सबके पास समय कम है;इसलिये बहनें राखी के दिन सुबह ही
आ पाती हैं।राखी बांधने के लिये परिवार के लोग तब तक कुछ ग्रहण नहीं करते जब तक बहनें भाई को राखी नहीं बाँध लेती।राखी बाँधने के लिये एक थाली में रोली,मौली,अक्षत
लेकर भाई को तिलक करती हैं;उसके पश्चात् कलाई पर राखी बाँधती हैं ।भाई के लिये लंबी आयु की कामना करती है और भाई अपनी सामर्थ्य अनुसार बहन को कुछ उपहार देकर उसे वर्ष भर हर संकट में उसका साथ देने का वादा करते हैं।दोनों एक दूसरे का मुंह मीठा करते हैं और परिवार जन मिलकर त्यौहार का आनंद उठाते हैं।
———————-
राजेश’ललित’
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Language: Hindi
Tag: लेख
9 Likes · 2 Comments · 756 Views
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