रक्षा बंधन :दोहे
दोहे–रक्षाबंधन
1–रक्षाबंधन रीत है, सिंधुघाटी अधार ।
एक कबीली रीत जो , बदली चुनरी धार ।।
2—अलक्षेन्द्र पत्नी बना,राजा पुरु सम्राट ।
पल में ही रण टल गया, राजा बना विराट ।।
3—राजा बलि भ्राता बना, लक्ष्मी धागा धार ।
विष्णुदेव वापस किये, बहना का उपहार ।।
4,—कर्णवती रानी हुई , भगिनी राखी भेज ।
हुआ हुमायूँ फिर प्रकट , बंधन हाथ सहेज ।।
5—राखी बहना बाँधती, अपने भाई हाथ।
देख देख खुश हो रही, रोली टीका माथ ।।
6—पीहर का आधार है, बहन भ्रात का प्यार ।
अंतहीन निभता रहे, सम्बन्धी व्यापार ।।।
7–बहना शगुन मना रही, पीहर हो आबाद ।
नाता बहना भ्रात का,गुड़ के जैसा स्वाद ।।
सुशीला जोशी, विद्योत्तमा
मुजफ्फरनगर उप्र