रक्तदान
रक्तदान
सामान्य तौर पर रक्तदान करने के लिए लोग अकेले या अपने दोस्तों के साथ ही आते हैं, परंतु ऐसे विरले ही लोग होते हैं जो सपरिवार आएँ। ऐसे ही चार लोगों को एक साथ और उनका परिचय जानकार डॉक्टर ने यूँ ही कारण पूछ लिया।
साथ में आए अधेड़ व्यक्ति ने बताया, “डॉक्टर साहब, कुछ साल पहले की बात है। हमारे गाँव में गाँधी जयंती के दिन रक्तदान शिविर लगाया गया था। ये छोटू हमें बिना बताए रक्तदान कर आया। यह बात जब उसकी माँ को पता चला, तो वह बहुत ही नाराज हुई। उसने अपने सिर पर हाथ रखकर कसम खाने को कहा कि आइंदा बिना बताए किसी भी ऐरे-गैरे को रक्तदान नहीं करेगा। छोटू ने अपनी माँ को बहुत समझाने की कोशिश की कि एक चींटी के काटने जितना दर्द सहकर जब हम कई लोगों की जान बचा सकते हैं, तो ऐसा नेक काम करने में कोई बुराई नहीं है। पर जब उसकी माँ समझने को तैयार नहीं हुई, तो छोटू ने भी शर्त रख दी कि एक बार आप स्वयं रक्तदान कर दीजिये, उसके बाद मैं भी आपके कहे अनुसार कसम खा लूँगा। थक-हारकर उसकी माँ भी पहुँच गई शिविर में। वहाँ से रक्तदान करके लौटने के बाद उसने जब हमें बताया कि यह तो बहुत ही सुविधाजनक और पुण्य का काम है तो फिर क्या था ? हम दोनों बाप-बेटे भी बहती गंगा में हाथ धोने मतलब रक्तदान करने पहुंच गए।
बाद में हम सबने विचार-विमर्श कर निश्चय किया कि हमारी शादी की सालगिरह के दिन चारों लोग एक साथ रक्तदान जरूर करेंगे। हमारे ये दोनों बेटे बीच-बीच में भी जरूरतमंद लोगों को रक्तदान करते हैं।
डॉक्टर ने उन्हें प्रोत्साहित करते हुए कहा, “वाह ! क्या बात है। काश ! सब लोग आपकी तरह सोच रखते, तो रक्त की कमी से प्रतिदिन होने वाली लाखों मौतें रोकी जा सकतीं।”
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़