रंग
एक दुःखद बात पर
तुमने बोला भी
लिखा भी
जब सड़कों पर उतरे
तो अच्छा लगा
कि
प्रतिक्रिया अब भी खड़ी होती हैं,
मैं भी साथ हो लिया
और ये लाज़िमी भी था।
फिर किसी बात पर
जो पहली सी ही बात थी
तुम्हारे स्वर लापता थे
कलम मेज के
नीचे कहीं गिरी पड़ी थी,
और तुमने भी उठाने
की जहमत नही की
सड़कें भी सूनी आंखों से
तुम्हारी प्रतीक्षा मे दिखी
बात एक ही थी,
पर तुम्हे शायद रंगों मे दिलचस्पी थी!!!
और इस बात का रंग उस बात से जुदा था।
चलो कोई बात नही,
तुम्हारी रंगों की इस दीवानगी को
अब मैं पहचानने लगा हूँ।