#रंग
रंग
रहीम भाई , बड़े ही उसूलों वाले , बड़े ही मज़हबी आदमी हैं।पांचों वक़्त की नमाज़ पाबंदी के साथ अदा करते हैं।और हर रोज़ सुबह की नमाज़ के बाद टहलने के लिए जाते हैं।एक दिन उनकी मुलाकात प्रेमनाथ शर्मा जी से हो गई।शर्मा जी बरहमण हैं और हिन्दूस्तान की गंगा जमनी तहज़ीब को ज़िंदा रखने के पक्ष में हैं।शर्मा जी और रहीम भाई चूंकि हमउम्र हैं इस लिए दोनों में बड़ी गहरी दोस्ती हो गई , दोनों एक दूसरे के घर जाने आने लगे।शर्मा जी हमेशा रहीम भाई को अपने तहवारों में आने की दावत देते मगर रहीम भाई हमेशा कोई न कोई बहाना बना कर तहवार वाला दिन टाल जाते।चूंकि वो मज़हबी आदमी हैं इस लिए नहीं चाहते के वो हिंदुओं के तहवारों में शरीक हों।मगर एक दिन अचानक शर्मा जी रंगों में लतपत रहीम भाई के घर आ पहोंचे।रहीम भाई उन्हें देख कर घबरा गए।शर्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा ” रहीम भाई होली मुबारक ” आईये मैं आप के गालों पर ज़रा सा रंग लगा देता हूँ।रहीम भाई को ग़ुस्सा आ गया , और कहने लगे।आप को मालूम है ना मैं मुसलमान हूँ इस्लाम का मानने वाला हूँ हिन्दू नहीं।
शर्मा जी ने रहीम भाई के गालों पर रंग लगाते हुए कहा ” रहीम भाई रंगों का कोई मज़हब नहीं होता।”रहीम भी की आंखे झुक गईं और ग़ुस्सा जाता रहा वो समझ गए थे के शर्मा जी उन्हें क्या समझना चाहते हैं।