रंग वासंती (मुक्तक)
रंग वासंती (मुक्तक)
-१-
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रंग वासंती प्रकृति में जब निखरते जा रहे हैैं।
सब पुराने शुष्क पत्ते टूट उड़ते जा रहे हैैं।
कोंपलें सब टहनियों पर खूब छाई जा रही जब।
हर्ष पूरित मन प्रफुल्लित नृत्य करते जा रहे हैैं।
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-२-
खिल उठे हैं पुष्प सुन्दर कर रहे गुंजन भ्रमर।
स्नेह की मृदु भावना का हो रहा मन पर असर।
देखिए हर ओर जब मँडरा रही हैं तितलियां।
रूप कलियों का खिला सौंदर्य भी जाता निखर।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
मण्डी (हिमाचल प्रदेश)