रंग जिन्दगी का
जरा संभल कर रहिये जनाब,
दुनिया बडी छोटी है ।
आप ने जो किया किसी के संग,
पुनरावर्ती उसकी संग आप के भी होती है ।।
इन्सान का क्या कर्म है, क्या धर्म है,
लालच की तो अब अती हो गयी,
कोई समझ नही पाया जीवन का क्या मर्म है ।
अँधेरा घेर रहा है अब ऊजालो को,
लाखो प्रश्न तरस रहे है जवाबो को,
इंसानियत तो कब्र में दबी है,
इन्सान की आँखो मे अब ना रही कोई शर्म है ।।।
इन्सान अपने उजले खाव्बो में बन्द है
मन में पली कालिख है,और गाते प्रेम के छन्द है ।।