रंग केसरी छाया है
जिस धरती पे जन्म लिया
खेले मिट्टी मे पले बढ़े
सौगन्ध हमे है मां तेरी
गायें महिमा तेरा मान बढ़े
न झुके शीश कटाना भाया है
लाडलों पे रंग केसरी छाया है
हम भारत मां के वीर सपूत
सीमा पे आंच न आने देंगे
आंचल लहराये जहां तक
छू ले कोई शान न जाने देंगे
पर्वत सागर तेरा ही साया है
दिवानों पे रंग केसरी छाया है
तेरी नदियां सागर धरती
बलिदान इसी पे हो जाये
तेरी फसलें उत्पाद खनिज
क्यों नजर गैर की हो जाये
श्वेद कणों से जिसे सजाया है
सपूतों पे रंग केसरी छाया है
शक्ति साहस है रंग केसरी
निडर जां कुर्बान रंग केसरी
शत्रु थरथर कांपे रंग केसरी
आंख न उठ सके रंग केसरी
देश के जवानो को भाया है
वीरों पर रंग केसरी छाया है
स्वरचित
मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
साहित्य बोध दिल्ली द्वारा आयोजित प्रतियोगिता मे पुरस्कृत