‘रंगीलो फाग’
❗’रंगीलो फाग'(कुंडलियां छंद)❗
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१
देखो “रंगीलो फाग”, ‘होलिका’ जली आग।
हर कोई मग्न है आज, सुन लो फगुआ राग।।
सुन लो फगुआ-राग , मस्ती में सब इसे गाए।
घर में पके व्यंजन,सब मिल-बांट खूब खाए।।
कह ‘पीके’ कविराय , गाल लगे रंग-गुलाल।
हर अपनों से मिलो, कहीं नहीं दिखे मलाल।।
२
पिया खेले सजनी से , जब “रंगीलो फाग”।
छुप रहे वो रजनी से , गाती वह निज राग।।
गाती वह निज राग , हमसे मित्रता न तोड़ो।
हम दोस्त बचपन के , हमको न यूं छोड़ो।
कह “पीके” कविराय , उसे भी रंग लगाइए।
उसको ऐसे ही न , आज यूं आप भुलाइए।
३
खेलो “रंगीलो फाग” , हवा बसंती संग।
मन मोहे रंग-गुलाल , न हो रंग में भंग।।
न हो रंग में भंग , संभल कर खेल होली।
पर तू न घबराना , जब आए द्वारे टोली।।
कह ‘पीके’ कविराय , सब मिल रंग खेलो।
“रंगीलो फाग” का , रंगीला मजा ले लो।।
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स्वरचित सह मौलिक;
…..✍️पंकज ‘कर्ण’
…..कटिहार(बिहार)।