रंगा शियार
रंगा शियार
गांव के तालाब पर हमेशा की तरह इधर-उधर की बातों का दौर चर्म पर था| सभी उपस्थित अपनी-अपनी भैंसों को तालाब में पानी पिलाने व नहलाने आए हैं| इस भयानक गर्मी में, भैंस तालाब से निकलने का नाम ही नहीं लेती| पशुओं संग आए ग्रामीणों के पास, तालाब के किनारे बरगद के पेड़ के नीचे बतियाने के अतिरिक्त कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है| तमाम तरह की चर्चा चलीं| राजनीति से होते हुए, चर्चा का विषय पड़ोसी देश पाकिस्तान व मुसलमान हो गये| हों भी क्यों नहीं, समाचार चैनल्स पर यही सब तो परोसा जा रहा है|
पं. राधेश्याम शर्मा तो पाकिस्तान को लेकर पूरा आक्रामक था| उसका बस चलता तो वह तुरंत सर्जिकल स्ट्राइक कर देता| जबकि वहीं पर उपस्थित सेवा निवृत शिक्षक जयसिंह समझाने का प्रयास कर रहा था कि वे लोग भी हमारी तरह अमन-पसंद हैं| हमारे और उनके संस्कार, रीति-रिवाज, भाषा व संस्कृति सब एक हैं| अच्छे लोग सीमा के उधर भी हैं, इधर भी हैं| जनता का आपस में कोई विवाद नहीं है| जो भी कुछ है, दोनों तरफ की सियासत का किया धरा है| बातें चल ही रही थी| इसी बीच अपने पशुओं को लेकर, सेना से सेवा-निवृत पूर्व सैनिक रामकुमार का गया|
सब कहने लगे, “सही बात रामकुमार ही बताएगा| यह पाकिस्तान के खिलाफ जंग भी लड़ा है|”
सबकी उत्सुकता देखकर रामकुमार फौजी ने बताना आरंभ किया| बात है सन 1965 की जंग की| भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे पर हमले कर रहे थे| इन हमलों में भारतीय भू-भाग में सीमा पर की गई कांटेदार तार की बाड़ क्षतिग्रस्त हो गई| सीमा रेखा ने भी अपना अस्तित्व खो दिया| ये पता लगाना मुश्किल हो गया था कि यह भू-भाग भारत का है या पाकिस्तान का| चलते-चलते पता ही नहीं चला कि मैं कब पाकिस्तान के भू-भाग में प्रवेश कर गया| जब सलवार-कमीज पहने पाकिस्तानी सेना के रेंजर्स ने मुझे ‘हैंडसअप’ कहा तो मुझे एहसास हुआ कि मैं पाकिस्तान के भू-भाग में प्रवेश कर गया| मैंने बिना देर किए अपने दोनों हाथ ऊपर कर लिए| उन्होंने मेरी तलासी ली| मेरे पास असलाह नहीं था| वे बन्दूक की बट मारते हुए, गाली निकालते हुए, अपने अॉफिसर के पास ले गये| मैं सहमा-सहमा, डरा-डरा सा था| अनेक आशंकाओं ने दिल-औ-दिमाग पर कब्ज़ा जमा लिया| अॉफिसर ने पास ही रखी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और पूछ-ताछ शुरु कर दी|
उसने पूछा, “कहाँ का रहने वाला है?”
उस समय हरियाणा बना नहीं था|
मैंने बताया, “पंजाब का|”
उसका अगला सवाल,”पंजाब में कहाँ का?”
मैंने कहा, “हांसी का|”
उसका अगला सवाल,”हांसी शहर का रहने वाला है या कोई गांव है?”
मैंने कहा, “हांसी तहसील के भाटोल गांव का|”
उसने फिर पूछा,”भाटोल जाटान या रांगड़ान?”
मैंने जवाब दिया, “भाटोल रांगड़ान|”
मेरा जवाब सुनकर उसकी आंखें लबालब भर गई|अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण करने का प्रयास करते हुए|
उसने फिर पूछा, “भाटोल रांगड़ान में किसका है?”
मैंने जवाब दिया,”श्योचन्द का|”
उसका अगला सवाल, “श्योचन्द चमार का?”
मैंने कहा,”हाँ|”
मेरा जवाब सुनकर उसकी आंखों का बांध टूट गया| उसने मुझे छाती से लगा लिया| फूट-फूट कर रोने लगा| बहुत देर तक रोता रहा| मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या मामला है|
अपने आंसू पौंछ कर बोला,”मैं भी भाटोल का हूँ| बंटवारे से पहले हमारा परिवार भाटोल रांगड़ान में तुम्हारे पड़ोस में रहता था| जब मारकाट हुई तो दंगाई भीड़ ने हमारा मकान घेर लिया| तब तेरे पिता श्योचंद चमार ने दंगाई भीड़ को ललकारा और कहा, “इस परिवार की तरफ कोई आंख उठाकर भी नहीं देखेगा| तेरे पिता ने हमें बहुत रोका| लेकिन रिश्तेदार और कुटंब-कबिले वाले सभी आ रहे थे| इसलिए हम भी पाकिस्तान आ गये| हम तेरे परिवार के एहसानमंद हैं| अब अहसान चुकाने की मेरी बारी है| फिक्र करने की कोई जरुरत नहीं| यूं समझ कि तू अपने ही घर में ही बैठा है| तू मेरा मेहमान है| ये इकबाल का वादा है, जंग खत्म होने के बाद खुली जीप में अदब के साथ भारत छोड़ कर आऊंगा|
मुझे अजीब सा महसूस हो रहा था| मैं एक पल भी विदेशी धरती पर रहना नहीं चाहता था| तत्काल वापस जाना चाहता| लेकिन इकबाल का स्नेह भी आकर्षित कर रहा था| उसके शब्द बार-बार कानों में गूंज रहे थे| “जब जंग खत्म हो जाएगी तो बड़े अदब से भारत छोड़ के आऊंगा|” लेकिन जंग की भयानकता मन को विचलित कर रही थी| जंग में दोनों तरफ के सैनिक बड़ी मात्रा में मर रहे थे| मैं आशंकित था| कहीं इस जंग में इकबाल भी न मारा जाए| अगर इकबाल मारा गया तो मेरा क्या होगा? मैंने इकबाल से फिर कहा कि मेरी वापसी का आज ही इंतजाम करो| इकबाल ने लाख मिन्नतें की, बार बार कहता रहा, तू यहां मौज कर, मैं तेरा बाल भी बिंगा नहीं होने दूंगा| तुझे बड़े अदब के साथ छोड़ कर आऊंगा|” लेकिन मैंने वापसी की जिद लगाए रखी| हार कर इकबाल ने कहा,”ठीक है तू जाना चाहता है तो जा, लेकिन दिन छिपने का इंतजार कर|”
इकबाल के आश्वासन ने मेरी बेचैनी बढ़ा दी| मैं इतना अधीर था कि कब दिन ढले? कब यहां से निकलूं? कब मेरी वापसी हो? यूं करते-कराते दिन ढल गया| सूरज ने पश्चिम में लालिमा बिखेर दी| अब धीरे-धीरे लालिमा भी विदा हो गई| अंधेरा अपना साम्राज्य स्थापित करने की फिराक में था| ज्यों ही अंधेरे का साम्राज्य स्थापित हुआ| इकबाल ने कहा,”रामकुमार तुझसे जुदा होने का मन तो नहीं करता| परन्तु तेरी जिद जाने की है तो जा| उसने मुझे एक गन्दे नाले में उतार दिया और कहा दो किलोमीटर तक इस गन्दे नाले में कोहनी के बल रेंग कर जाना होगा| अगर सिर ऊपर किया तो इधर पाक रेंजर्स, उधर भारतीय फौजी गोली मार देंगे| इकबाल के कहे अनुसार उस बदबूदार गन्दे नाले से होकर, दो किलोमीटर तक रेंग कर भारतीय भू-भाग में प्रवेश किया और अपनी बटालियन में पहुंच कर, राहत की सांस ली|
इकबाल भी पाकिस्तानी है| उसे किस मुंह से बुरा कह दूं| जनता बुरी इधर भी नहीं, जनता बुरी उधर भी नहीं| रामकुमार की बात सुनकर सभी भावुक हो गये| अब चर्चा का विषय था कि दोनों तरफ अच्छे लोग हैं तो रंगा-शियार कौन है| उसे पहचानो| जो अमन में आग लगा रहा है| नफरतों का व्यापार करके सियासत चमका रहा है|
-विनोद सिल्ला©