रंगरेज कहां है
ऐसे रंग कहाँ मिलते हैं,
लेकर चल वो देश जहाँ है ?
जिससे तूने पंखे रगायें
तितली वो रंगरेज कहाँ है ?
जिसने स्याही की चादर पर जुगनू से बूटे रक्खे हैं।
धूसर होते नेत्रपटों पर जिसने इंद्रधनुष लिक्खे हैं
मैं भी कोई जुगत लगाकर उसके ही दर पर जाऊँगी।
मन के कोरे पट पर अब मैं उससे ही रंग चढ़वाऊंगी।
जिसको सूरज ढूँढ रहा है
यहाँ वहाँ अनिमेष कहाँ है ?
जिससे तूने पंखे रगायें
तितली वो रंगरेज कहाँ है ?
उसका पता बता दो यदि तुम तुम्हें सदा आभार रहेगा।
वर्णमयी तेरे पंखों को वर्णहीन का प्यार रहेगा।
मैं ईश्वर की नीरस रचना, तुमको अपना गुरु कहूँगी।
उससे मुझको मिलवादो यदि, सदा तुम्हारी ऋणी रहूँगी।
ढूँढ चहुंदिशा हार गई हूँ,
कुछ तो दे दो भेद कहाँ है ?
जिससे तूने पंखे रगायें
तितली वो रंगरेज कहाँ है ?
© शिवा अवस्थी