रंगमंच
कारण तो बहुत हैं , शिकवे शिकायतें करने के
मगर जब से हमने हर मौसम में लुत्फ़ लेना सीख लिया ,
जिंदगी के सब शिकवे बेकार हो गए ।
ज़िन्दगी तो बस एक नाटक है , दुनियाँ के रंगमंच में हमें अपने किरदार को बखूबी निभाना है ।
फिर क्यों रो _रो कर दुखी होकर गुजारें जिंदगी
जीवन के हर किरदार का अपना एक अलग अंदाज़ है क्यों अपना-अपना किदार बखूबी निभा लें हम
इस नाटक की एक विशेष बात है , क़ि हमने जो परमात्मा से मस्तिक्ष की निधि पायी है।
बस उस निधि का उपयोग ,करने की जो छूट है ,उससे हमें खुद के रास्ते बनाने होते हैं
हमारी समझ हमारी राहें निशिचित करती हैं।
परिश्रम ,निष्ठा, और निस्वार्थ कर्मों का मिश्रण जब होता है।
तब मानव अपने किरदार में सूंदर रंग भारत है,और तरक्की की सीढियाँ चढ़ता है।
भाग्य को कोसने वाले अभागे होते हैं ,
वह अपने किदार में शुभ कर्मों का पवित्र रंग तो भरते नहीं।
फिर भाग्य को कोसते हैं ,और परमात्मा को दोषी ठहराते हैं।