रंगत जुदा जुदा खुशबू अलग अलग
डिस्क्लेमर
उक्त संस्मरण एक कठोर धरातल पर भोगे हुए हुए यथार्थ पर आधारित है जिसके वर्णन में मैंने किसी भी प्रकार की कल्पनाशीलता अथवा अतिशयोक्ति का सहारा नहीं लिया गया है । अपने आनंद एवं ज्ञान वर्धन हेतु कृपया इस लेख को आद्योपांत पढ़ें ।
यह घटना उस समय की है जब मैं मेडिकल कालेज में एक जूनियर रेजिडेंट के पद पर गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग में कुछ समय के लिए रोटेशन पर तैनात किया गया था । हमारे सम्मानित विभागाध्यक्ष प्रोफेसर बहुत अच्छे क्लिनिकल एक्सपर्ट थे । पहले ही दिन सुबह के राउंड के समय वह वार्ड में एक पीलिया के रोगी के सामने खड़े हो गए तथा पाखाने का नंगी आंखों से परीक्षण का महत्व हम सब को विस्तार से गिन – गिन कर समझाने लगे कि किस प्रकार हम लोग केवल नंगी आखों से पाखाने को देख कर ( only by nacked eye examination of stool ) से 100 से अधिक बीमारियों की पहचान कर सकते हैं , फिर किसी पीलिया के मरीज में रोग में सुधार के साथ साथ मरीज़ के द्वारा उत्सर्जित मल में के रंग में clay color से dark yellow में बदलने से किस प्रकार मरीज़ में सुधार होता है बताया ।
फिर उन्होंने कहा कि अगले दिन वे उस पीलिया के रोगी का पाखाना देखना चाहेंगे ।
अगले दिन राउंड के समय जब हम सब उनके साथ उस पीलिया के मरीज के बिस्तर के पास पहुंचे और प्रोफेसर साहब ने पूछा इसका का पाखाना कहां है ? उनके इस प्रश्न पर सीनियर रेजिडेंट ने जूनियर रेजिडेंट को और जूनियर ने हाउस को और हाउस ने इंटर्न की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से घूरा , अब हम सबको असमंजस में देखकर वह मरीज अपने बिस्तर से उठ कर खड़ा हो गया तथा एयर इंडिया के ब्रांड मॉडल महाराजा की मुद्रा में झुक कर खड़े होकर कर इशारा किया कि आइए मैं बताता हूं कहां है और यह कहकर वह वार्ड से बाहर की ओर चलने लगा हम सब पूरी यूनिट वाले लोग उसके पीछे पीछे चल दिए वह हम सब को लेकर मेडिकल वार्ड पार कराता हुआ गैलरी में से होता हुआ बरामदे को पार करता हुआ दो वार्डस की लम्बी भुजाओं के बीच स्थित मैदान में ले जाकर के खड़ा हो गया ।इस मैदान में चारों ओर मध्यम ऊंचाई के पाम के पेड़ लगे हुए थे , कुछ देर बाद इधर-उधर देखकर सोचकर ध्यान से वह हमें एक पेड़ के तने के पास ले गया और झुक के एक पाखाने के ढेर की ओर उंगली के इशारे से दिखाते हुए बोला यह है ।
हम लोग भी झुक कर के देखने लगे वहां एक पाखाने का ढेर पड़ा था , इससे पहले कि हमारे प्रोफेसर साहब हमें कुछ अपनी expert opinion देने को उद्धत होते कि वह बोला नहीं नहीं सर यह वाला नहीं और फिर दो – तीन पाम के पेड़ छोड़ कर जो ढेर पड़ा था वहां ले जाकर उसने उंगली के इशारे से इंगित किया कि यह होगा । हम लोगों ने देखा कि वह एक सूखा पड़ा 3 -4 दिन पुराना पाखाने का ढेर था , तो हम लोगों ने उसे डांटा कि
यह तो पुराना है यह कैसे हो सकता है ।फिर वह कुछ संकोच में वह इधर-उधर भटकने लगा ।और इस प्रकार उसने मैदान के दो-तीन चक्कर लगा कर हम लोगों को अपने पीछे पीछे रख कर लगवाए और 3 – 4 और भी मल के ढेर दिखाए । अब तक हम मल के सैम्पल को देख कर उसकी समयावधि ज्ञात करने के विशेषज्ञ जरूर बन चुके थे । तभी मल के एक ढेर के पास जब हम सब एकाग्र चित्त हो ( कंसंट्रेट ) देख रहे थे तभी हम लोगों की टीम में उपस्थित एक चपल इंटर्न जो देखने के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक और अति उत्साही था और हम लोगों की टांगों के बीच में से घुस कर आगे बढ़ कर सबसे पहले उस पाखाने को अपनी नंगी आंखों से देखने को बेचैन रहता था का पैर एक अन्य पाखाने के ढेर पर जूता समेत फच्च से पड़ गया तथा यह बात हम सब लोगों ने भी देख ली । पैर पड़ते ही वह उछला और अपनी टांग को पाखाना छुड़ाने के लिए जोर-जोर से झटकना शुरू किया , जिससे कि उसके उड़े छींटे या लोथड़े उचट कर अगल-बगल खड़े हम सब पर पड़ने लगे , यह देख वह मुंह लटका कर अपराधी भाव से अपनी एक टांग वा एड़ी उचका कर त्रिभंगी मुद्रा में शान्त हो कर खड़ा हो गया ।
अब हम सबका मन पढ़ने पढ़ाने और देखने से उचट गया था तथा एक नीरस वैराग्य भाव सा माहौल में उत्पन्न हो गया था । अंत में हमारे प्रोफेसर साहब ने हमें बताया कि कल से इसको एक हंडिया दे देना जिसमें यह अपना मल रखे गा । तो वह मरीज़ बोला सर मैं हंडिया में बैठकर नहीं फिर पाऊंगा ।
इन सभी बातों को सुनते हुए हमारी यूनिट के सीनियर रेजिडेंट ने उसका अनुमोदन करते हुए सलाह दी कि सर आज शाम को मैं इसे इसके नाम का छोटा सा एक डंडी पर flag बना के दे जाऊं गा और कल सुबह यह अपने पाखाने पर उस flag ? को लगाकर के चिन्हित कर दे गा । इस पर मुझे याद आ गया कि किस प्रकार हम मोम की ट्रे पर मेंढक को चीरने के बाद उसके अंगों को फ्लैग लगाकर चिन्हित करते थे ।