यक़ीन
जिंदगी क़शम़क़श में गुज़ारता रहा हाल़ातों से समझौता करता रहा।
शब़े ग़म गुज़ार दी मस़र्रत की स़हर के इंतज़ार में।
जो मय़स्सर था उसे पा कर तस़ल्ली कर ली नस़ीब फ़िरने के ए़तबार में।
दोस्तों के फ़रेब खाकर भी माथे पर शिक़न ना आने दी।
जो ख़ता उन्होंने की उसे माफ़ कर बदले की आग दिल में ना सुलगने दी।
मुझे ये यक़ीन था कि एक दिन वो ज़रूर आएगा जब मेरी तक़दीर का सितारा उरूज़ पर होगा।
तब ये बंदे जो आज मेरी खिलाफ़त में खड़े हैं कल मेरी दोस्ती को तरसेंगे।
और अपनी जफ़ाओं पर शर्मिंदा होकर मुझसे माफी मांगने के लिए मजबूर होगें।