यक़ीं उसने जीता था छलने से पहले
यक़ीं उसने जीता था छलने से पहले
फंसा दांव में मैं संभलने से पहले
चकाचौंध में वो कहीं खो गया था
बुलन्दी बला की थी ढलने से पहले
मिला प्यार जब से बदल वो गया है
सताया था सबको बदलने से पहले
ज़ुबाँ पर फ़क़त लफ़्ज़ था अलविदा का
लबों पर हंसी उसके चलने से पहले
जुदाई में आँखों में आई नमी थी
वो ख़ामोश ही था उबलने से पहले
बुरा दौर ‘आनन्द’ बदला नहीं था
मुक़द्दर का पत्थर पिघलने से पहले
– डॉ आनन्द किशोर