योग क्या है और इसकी महत्ता
योग विज्ञान पर आधारित एक आध् यात्मिक विषय है जो मन एवं शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करने पर ध्यान देता है। यह स्वस्थ जीवन यापन की कला एवं विज्ञान है। योग शब्द संस्कृत की युज धातु से बना है जिसका अर्थ जुड़ना या एकजुट होना या शामिल होना है। योग से जुड़े ग्रंथों के अनुसार योग करने से व्यक्ति की चेतना ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ जाती है जो मन एवं शरीर, मानव एवं प्रकृति के बीच परिपूर्ण सामंजस्य स्थापित करता है । आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड की हर चीज उसी परिमाण की अभिव्यक्ति मात्र है। जो भी अस्तित्व की इस एकता को महसूस कर लेता है। उसे योग में स्थित कहा जाता है और उसे योगी के रूप में पुकारा जाता है। जिसने मुक्त अवस्था प्राप्त कर ली है जिसे मुक्ति, निर्वाण या मोक्ष कहा जाता है। इस प्रकार, योग का लक्ष्य आत्म-अनुभूति, सभी प्रकार के कष्टों से निजात पाना है जिससे मोक्ष की अवस्था या कैवल्य की अवस्था प्राप्त होती है। जीवन के हर क्षेत्र में आजादी के साथ जीवन – यापन करना, स्वास्थ्य एवं सामंजस्य योग करने के प्रमुख उद्देश्य होंगे। योग का अभिप्राय एक आंतरिक विज्ञान से भी है जिसमें कई तरह की विधियां शामिल होती हैं जिनके माध्यम से मानव इस एकता को साकार कर सकता है और अपनी नियति को अपने वश में कर सकता है। चूंकि योग को बड़े पैमाने पर सिंधु – सरस्वती घाटी सभ्यता, जिसका इतिहास 2700 ईसा पूर्व से है, के अमर सांस्कृतिक परिणाम के रूप में बड़े पैमाने पर माना जाता है, इसलिए इसने साबित किया है कि यह मानवता के भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों तरह के उत्थान को संभव बनाता है। बुनियादी मानवीय मूल्य योग साधना की पहचान है। निरोगी काया जीवन यापन के लिए बहुत आवश्यक है वह वर्तमान समय में योग से ही मिल सकता है। मनुष्य का पहला सुख निरोगी काया माना गया है।अगर मनुष्य निरोगी है वह अपने सभी कार्य सुचारू रूप से कर सकता है और अपने जीवन यापन के लिए धन का भी अर्जन कर सकता है और अपने परिवार को चला सकता है। मनुष्य का दूसरा सुख घर में हो माया अर्थात धन हो। वह धन तभी कमा सकता जब उसकी निरोगी काया हो। अतः जीवन में योग करना बहुत ही आवश्यक है।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम