योगेश्वर बनो
सत्य की गर्दन मरोड़ने का कार्य अनवरत जारी
गढ़ रहे हैं सत्य की नई परिभाषाएं
देखते देखते हर एक के सामने
उतर रहे हैं द्रोपती के वस्त्र
कृष्ण अदृश्य ,पुकार बेकार
कितने दुशासन,दुर्योधन पा रहे हैं पुरुस्कार
धर्म मूक,सत्य बेड़ियों में
सभ्यता पर लानत
आंधिया , बिजलियाँ ,धर्म की फसल पर
इंसानियत बोनी , धर्म का इतिहास अपने अनुसार
इनकी अदालत , इनके पेशकार,
कोई कृष्ण नहीं आयेगा ,बचाने
सामर्थ्य बढ़े, बंद हो धर्म से छेड़छाड़
खुद के अंदर की द्वारिका में झांको , निकालो योगेश्वर को बचाने ,बेटियों और राष्ट्र की अस्मत।