ये हाल मेरे दिल का
ये हाल मेरे दिल का दिलदार तक न पहुँचा
ख़त लेके मेरा क़ासिद सरकार तक न पहुँचा
बादे हयात भी मैं इक ऐसा परिन्दा हूँ
‘जो छूटकर क़फ़स से गुलज़ार तक न पहुँचा’
है अपनी मुहब्बत भी इक ऐसा फ़साना जो
मिसरा ही रहा हरदम अशआर तक न पहुँचा
सर काट लिया उसका या अपना कटा डाला
वो हाथ गिरेबाँ से दस्तार तक न पहुँचा
वो जाल साजिशों के बुनता है ‘असीम’ ऐसे
मैं चाहकर भी असली किरदार तक न पहुँचा
– शैलेन्द्र ‘असीम’