*”ये वक्त”*
“ये वक्त”
वक्त ही तो तुम्हे -मुझको,
अगढ़ से सुगढ़ बनाता है।
यही वो वक्त है जो हमको,
अपने-परायों से मिलता है।
समय ही है जो चलता जाता है,
रुकता वही है जो थक जाता है।
थके हारे हुओं को लड़ाता है।।
वक्त ही तो तुम्हे -मुझको,
अगढ़ से सुगढ़ बनाता है।
समय पर कद्र समय की जिसने,
गगन में अरुण सा धधक जाता है।।
शीश वसुधा पर विरला चढ़ाता है।।
वक्त ही तो तुम्हे -मुझको,
अगढ़ से सुगढ़ बनाता है।
चुनो रफ्तार, सुनो धीमी न होने दो,
उड़ने बालों को यही ठहर सा जाता है।
गगन में पंख भीरु नही फड़ फाड़ता है।
वक्त ही तो तुम्हे -मुझको,
अगढ़ से सुगढ़ बनाता है।
नई दुनिया गढ़ो- बढ़ो आगे,
चढ़ो सीढ़ी नई उम्मीद जागे।
ठिठकने से वक्त बिगड़ जाता है।
वक्त ही तो तुम्हे -मुझको,
अगढ़ से सुगढ़ बनाता है।
उम्मीदें ले, मन मे ख्वाब ऊँचे,
अमन और चैन, पैगाम ऊँचे।
कशमकस में रगड़ जाता है।
वक्त ही तो तुम्हे -मुझको,
अगढ़ से सुगढ़ बनाता है।
अधूरापन अधूरी नींद,
नही भाती ऐंसी जींद।
कभी यूँ मन उखड़ जाता है।
वक्त ही तो तुम्हे -मुझको,
अगढ़ से सुगढ़ बनाता है।
आने की आहट से खिल उठना,
अब तो वही खट पट लगना ।
सुनते ही मन निगूढ़ जाता है।
वक्त ही तो तुम्हे -मुझको,
अगढ़ से सुगढ़ बनाता है।
कमलेश कुमार पटेल “अटल”
दिनांक : २०/०९/२०१९
समय : रात्रि ९ घटि