ये वक्त कुछ ठहर सा गया
ये वक्त कुछ ठहरा ठहरा सा है।
न जाने किसने लिया है इसे शिकंजे में ,
कोशिश तो हमारी आखरी तक रहती है ।
उनको मनाने की
फिर क्यों हार जाती हूं हर बार
सवाल तो बस अब एक ही है
कोशिशें हैं अधूरी या ,,,,,,
नाराज़गी के सिवा कुछ ,,,,,,
और तो नहीं। ।।।