ये लब कैसे मुस्कुराए दे।
ये लब कैसे मुस्कुराए दे जब दिल परेशां है।
ज़ख्म तो भर गए हैं पर अभी बाकी निशां हैं।।1।।
ये मुहब्बत भी अजब है जानें कहां हो जाए।
दिल दे दिया हमनें उनको जो दुश्मने जां है।।2।।
अकीदा उठा जब मुहब्बत से तो समझ में आया।
सच्चे आशिक इश्क में होते क्यूं जमीं आसमां है।।3।।
हाल क्या बताए हम उस बेवफा शख्स का।
झूठे निकले उसके सारे वादे झूठी उसकी ज़ुबां है।।4।।
ज़ख्म पर ज़ख्म लेकर जिन्दगी जी रहे हैं।
कभी गुलशन से थे हम अब हो गए बागवां हैं।।5।।
अब तवक्को नहीं हमें किसी भी रिश्ते से।
खुदा के सिवा कोई ना बचा हमारा रहनुमां है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ