तो ये राहत है?
पच्चीस मार्च को आठ बजे,
रात का हुआ था आगाज,
और तभी,आई यह आवाज,
आज की आधी रात से,
देश में तालाबंदी शुरू हो जाएगी,
और हमें याद आ गई वह रात,
जब इसी अंदाज में,
घोषणा की गई थी,
आज रात से,
हजार,व पांच सौ के नोट,
रद्दी हो जाएंगे,
बस समझ आ गया था,
अब महिने दो महीने के लिए,
वहीं दौर फिर आ रहा है,
तब भी सरकार ,
नहीं थी, पुरी तरह तैयार,
और अब चार वर्ष बाद भी,
हुआ लगभग वही हाल,
तब बैंकों में लगा करती थी कतार,
नोट बदलने,या जमा करने को,
और अब लगने लगी है कतार,
राशन पाने को,,
खाना खाने को,
और फिर जब ना हो सका,
भूख से मुक्त होने का इंतजाम,
तो फिर लगे निकलने,
अब घर जाने को,
बिना यह सोचे,
राह में मिल भी पायेगा खाने को,
और इतना लंबा सफर,
तय भी कर पायेंगे,
पैदल चल कर,
कैसे इतना लगातार चल पाएंगे,
कहां रात में रुक कर,
रह पाएंगे,
कहां हमें खाने को मिलेगा,
कैसे चाय, पानी मिलेगा,
कुछ भी तुमने ना विचार किया,
अब देखो,क्या,क्या ना तुमने यह सहा,
वह पटरियां ही तुम्हें लील गई,
जिसमें तुम्हारे पसीने की बूंदें थी गिरी,
अब उसने तुम्हारे खून को भी चख लिया,
थोड़ा सा भी ख्याल नहीं किया,
वह सड़कें भी जो तुमसे ही बनी है,
वहां पर भी अब जान्ने हैं जा रही,
कोई रौंद रहा है,पैदल चलने पर,
कहीं पर मर रहे हैं, टकरा कर,
कोई मरता है भूख प्रयास से,
कोई मर गया हतासा से,
पर सरकार को पसीजने में,
बहुत समय लग गया,
और तब तक तो,
ना जाने कितने लोगों का खून,
सड़कों पर बह गया,
और तब जो व्यवस्था आपने की,
वह नहीं प्रर्याप्त थी,
उसमें भी,अपना नंबर नहीं आया,
कितना समय इसमें गंवाया,
और फिर जब सब्र का बांध टूट गया,
तब आपने, राहत का ऐलान किया,
उस राहत में मुझको क्या मिल गया।
अब उसी के हिसाब में लग गया हूं,
देखता हूं मैं इसमें कहां पर खड़ा हूं।