ये रातें
ये रातें…..
अब मेरे लिए,
दहशत का पर्याय लगती हैं,
तेरे न होने से,
ये काट खाने को दौड़ती हैँ;
और वो पूनम का चाँद भी,
अब बासी लगता है
नभ के ये सितारें भी,
मुझे सुलगते से लगते हैं
हाय! तेरा यूँ जाना,
मुझे बर्बाद कर गया;
मेरी तन्हाइयों को,
आबाद कर गया।
तेरी चूड़ियों की खनक से ही,
मेरी रातें जो महक जाती थी
तेरी जुल्फों की छाँव में
मेरी जिंदगी जो सँवर जाती थी;
अब सिसककर दम तोड़ देती हैं
इस कदर हमारी आहें,
न जीने को जी चाहता है
न मरने को,
एक आस है अधूरी सी,
के तुम आओगी
जिंदगी को मेरी
फिर से महकाओगी,
मगर तेरे आने का
वो दिन कौन-सा होगा,
क्या इस रूह को
मैं तब तक कैद रख पाऊँगा,
जो तेरे जाने के गम में
निकलती सी जाती है,
तेरी एक झलक पाने को,
तड़पती सी जाती है।
सोनू हंस