ये मौसम है सावन
उमड़-घुमड़ कर बादल आये बूम-बड़ाम-बड़ाम।
दुम दबाकर भागी गर्मी पारा हुआ धडाम।
सुबह सुहानी दोपहर सुन्दर प्यारी प्यारी शाम।
देशी लंगड़ा और दसहरी तरह तरह के आम।
बाग-बाग दिल हुए सभी के पेड़ों पर हैं झूले।
रिमझिम बारिश में सब बच्चे अपनी सुध-बुध भूले।
कोयल गाती मीठी लय में मेढक भी टर्राए।
रानी बहते पानी में कागज की नाव चलाए।
यह सब मस्ती देख बड़ों को याद आ रहा बचपन।
हम भी भीगें हम भी झूलें अभी नहीं वश में मन।
नाच मोर का ,मेघों की धुन सुमन-सृजित है उपवन।
महका चन्दन अब बहका मन यह मौसम है सावन ।
संजय नारायण