ये मौसमी बहारें
रचना नंबर (24)
ये मौसमी बहारें
मौसम दे जाते कई संदेशें
नसीहतें भी ये दे जाते हैं
तालमेल रहे यूं नियति से
हमें ये आगाह करा ते हैं
*बारी-बारी से ये आते
सारे नियम भी निभाते
आचरण से ही रहना है
ये सबको सीख दे जाते
गलतियाँ जो करोगे तुम
भोगना तुमको ही होगा
ये सारे बदलते मौसम
प्रकृति के साथ चलते हैं
झंझावात जब आता
तरु सब काँपने लगते
हरे पल्लव सिहर जाते
भय से रुग्ण हो जाते
जो आया है उसे जाना
झर कर उपदेश दे जाते
ये सारे बदलते मौसम
प्रकृति के साथ चलते हैं
प्रस्फुटित ये नवकोपलें
स्वागत नवसृजन का है
खेत में हैं झूमते हलधर
नदियाँ मल्हार गाती हैं
सावनी बूंदे बरस करके
खुशियाँ धरा पे लाती हैं
ये सारे बदलते मौसम
प्रकृति के साथ चलते हैं
बसंत जब मुस्कुराता है
सुहाने सफ़र सा एहसास
होती माँ शारदे पुलकित
झंकार वीणा की है गूंजे
होता आल्हाद चहुँ ओर
नई उम्मीदें विहसती हैं
ये सारे बदलते मौसम
प्रकृति के साथ चलते हैं
बहारें ठिठुरन बढ़ाती हैं
नव सपनें भी सजाती हैं
धान खेतों में पकता है
फल-तरकारियाँ किलके
मौज है भरपेट खाने की
जगमगाते दीप जग में हैं
ये सारे बदलते मौसम
प्रकृति के साथ चलते हैं
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित