ये मौन तुम्हारा, है बहुत कातिलाना
हुआ क्या है तुमको,
कुछ कहते नहीं, क्यों?
ये मौन तुम्हारा,
है बहुत कातिलाना
आदत है सुनने की
चहक तुम्हारी,
चुप क्यों हो?
ख़ता कुछ हुई है क्या, हमसे?
बोलो न! कुछ तुम
भले ही हो गुस्सा,
डाँटो भले ही
पर मौन को तोड़ो!
खरी-खोटी, मीठी
कोई बात बोलो
लबों पर हाँ फ़िर से
बसा लो हमें जी।
ये मौन तुम्हारा
जां ही न ले ले
ये मौन तुम्हारा
है बहुत कातिलाना।
✍️अटल©