” ये मैं हूँ “
निश्चल बहती नदी को
अपनी मजबूरियों , लाचारियों
और कुंठाओं के बाँध से बाँधना
निर्दयता की पराकाष्ठा ,
बेचारी नदी चित्कार कर
लाचार थमी सी
अपने में ताकत बटोरती ,
कि कब आयेगा उफान
टूटेगा बाँध
बहूँगी मै भी
कल – कल करती !!
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 04 – 06 – 2004 )