ये माथे पे तांडव करते है..
इन जयचंदो को सिखलाना है……
इनको इनकी औकात बतलाना है
हम जबसे शांत बैठे है….
ये माथे पे तांडव करते है
कहदो ये बंद करे ये नौटंकी
अपनी औकात में जाए
जिस दिन टूटा सब्र हमारा ….
इनको इनकी औकात बतला देंगे
मिल गई छूट अगर हमारी सेना को…
ये जयचंद भाग खड़ा होंगे
जहा ये तिरंगा फ़ाड़ेगे…..
वही हमारे वीर इन्हें गाण्डगे।।।।
अब भी समय ये दिल्ली कि सल्तनत…
देदो सरहद अपने वीर जवानों को
भूल जाएंगे ये तिरंगा फाड़ना….
जब रोज मारे जाएंगे।।
लेखक – कुंवर नितीश सिंह