ये मथुरा की धरती हैं साहब !
ये मथुरा की धरती हैं साहब!
जीवित हैं यहाँ कृष्ण की कहानियाँ,
जीवित हैं यहाँ राधा की निशानियाँ
यशोदा की जुबानियां,
माखनचोर की शैतानियां
जीवित हैं यहाँ यमुना की लहरें,
वासुदेव का जाना, और कंस के पहरे
जीवित है यहाँ कृष्ण का बंसी तट
यमुना किनारे वाला, गोपियों का पनघट
जर्रे जर्रे में राधा के अहसास बसते हैं
कृष्ण की चाहत में कुछ होठ हँसते हैं
जहाँ फेरोगे नज़र, कुछ खास नज़र आता है
गोपियों और कृष्ण का रास नज़र आता है
ये धरती कुछ कहती है
न अपने में रहती है
व्यथित है आज के भौतिकवाद से
सब चुपके से सहती है
मगर कोई है जो सुदर्शन से छाया देता है
मिटटी की धरती को, सोने सी काया देता हैं
ना उफ़ करता हैं, ना आह करता है
चुप रहकर भी सबकी, परवाह करता हैं
इसी धरती में, तुम्हारा प्यार हैं कृष्ण
गोपियां की अटखेलिया, यशोदा का दुलार है कृष्ण
हर एक दिन का त्यौहार है कृष्ण
इस धरा का एक बड़ा उपकार है कृष्ण!
नमन तुम्हे कृष्ण!
– ©नीरज चौहान