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17 Feb 2024 · 1 min read

ये मछलियां !

मछलियां अक्सर ज़िन्दा रह जाती हैं
अपने गिल्स फड़फड़ाते,
छिपा जाती है लिंब।
स्त्री भी ज़िंदा रह जाती है
पलकें फड़फड़ाती अपने श्वसन तंत्र में।
धरती को ही तो देख पाती है,
अपने ही किसी चाँद में तैरते हुए
और
छिपा लेती है अपना स्त्री लिंग।
अपने माथे की बिंदी को मानती है
मछलियों का चूमना।
ये भी एक शगुन है
क्योंकि मछली भी स्त्री की तरह निर्गुण नहीं।
गुण हों तो वह फड़फड़ाती है।
अवगुण हों तो छिपा ली जाती है।
और
निर्गुण हों तो खा ली जाती है।
कौन – मछली?
नहीं भई! स्त्री!
हाँ…! शायद मछली भी।

Language: Hindi
80 Views

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