ये भेदभाव क्यों हुआ!
लोग भेदभाव करते हैं,
यह सुना करते थे!
कभी कभार देखने को भी मिला,
भेदभाव जब किया गया!.
इसे करने का उद्देश्य भी रहा,
था अपने और पराए का संदेश छिपा !
परिवारों में यह युक्ति कही भी जाती रही,
साम दाम दण्ड भेद है ऋति पुरानी,
घर के बड़े बुजुर्ग इसे हम पर आजमाते रहे,
परन्तु उनके भावों में भेदभाव नहीं छलका,
जो आज कल सत्ता के गलियारों में है दिखाई दे रहा,
अपने पराए का यह भेद भाव यहां खूब हो रहा,
मतभेदों का है यह क्रूरतम चेहरा!
अब आक्सीजन के बंटवारे में यह पक्षपात हो गया,
जहां नहीं थी अपनी राज्यसत्ता उससे हमें क्या,
यह अभी तो जताना है,
हमें क्यों नही चुना, यह बताना है,
जिन्होंने चुन लिया हमें,
उन्हें जरुरत से भी ज्यादा दिया,
जिन्होंने नकारा था हमें,
उनका हमने घटा भी दिया,
यह भेदभाव का दृश्य दिखाई भी दिया!
राज नेताओं की अब कहें क्या,
मैं अच्छा,वो निकम्मा,का सिलसिला चल पड़ा,
एक दूसरे को नीचा दिखाने का खेल खूब चला,
राष्ट्रीय आपदा पर जब हो रही थी चर्चा,
सीधा प्रसारण एक ने करा दिया,
दूसरे को जब पता चला तो वह कहने लगा,
यह तो नियमों का उल्लघंन है किया गया,
एक नहला बना रह गया,
दूसरा दहला बन गया,
अब एक दूसरे पर ठिकरा फोड़ा जा रहा,
कौन क्या बोल रहा था, कौन कैसे टरका रहा था,
यह सब लोगों को दिख गया,
यह कैसी विडम्बना आ खड़ी हुई,
सरकारें आपस में ही टकरा रही,
किसी के पास निदान नहीं रहा,
जब समय था तब उसे चुनावों पर जाया किया,
तब प्रार्थमिकता थी कैसे भी अपनी सरकार बने,
जनता की सुध तो बाद में भी ले लेंगे!
अब जब न्यायालयों ने हस्तक्षेप किया,
अब तक कर रहे थे क्या,
क्यों इस पर सोचा नहीं गया,
अब जाकर कैसे भी पूर्ति करो,
भीख मांगों, चोरी करो,
या फिर फरियाद करो,
यह सुनामी बनकर आई है,
इस पर ध्यान केन्द्रित करो!
न्यायालय इससे ज्यादा कर भी क्या सकता है,
कह सकता है, डांट डपट सकता है,
सोई हुई आत्मा को जगाने का प्रयास कर सकता है,
किन्तु यदि भावनाएं ही न रहे,
तो फिर क्या कर सकता है!
लोग अकाल मृत्यु को मर रहे हैं,
चाहे वह हड़बड़ी में भरें,
चाहे वह अव्यवस्थाओं से मरें,
चाहे वह लापरवाही से मरें,
चाहे बिना उपचार के मरें,
चाहे वह बिना दवा खाए मरें,
चाहे वह बिना आक्सीजन के मरें,
मरना तो आम आदमी को ही है,
चाहे वह कैसे भी मरें,
सरकारें करती रहें मतभेद,
चाहे करती रहें भेद,
किसी भी तरह से,ठीक नहीं है यह अतिरेक!!