ये बेटियाँ
कविता – ये बेटियाँ
पावन मूरत, सुहानी सूरत , तेजोमय आभा है ,
प्रकाश – पुंज सी उज्ज्वलता , माँ गंगा की धारा है ,
माँ की ममता है इसमें , माँ का पावन रूप है ,
सूरज की लाली सी जगमग, सुन्दर रूप अनूप है ।
ये बेटियाँ , ये बेटियाँ – ये बेटियाँ, ये बेटियाँ ।।
नित – नूतन मंगल ही मंगल, लक्ष्मी का निवास है ,
व्रत, उपवास, त्यौहार, अमावस, दीप – ज्योति की उजास है,
तरू – पल्लव सी छटा निराली, वट – पीपल की छाव है ,
अँगना की क्यारी में तुलसी , सहज,सरल मनोभाव है।
ये बेटियाँ , ये बेटियाँ , ये बेटियाँ, ये बेटियाँ ।।
बेटी के स्वर गूँजते ऐसे , बजती जैसे कान्हा की मुरली ,
कर्ण – प्रिय धुन मधुर सुनावे, गुनगुन जैसे पुष्पों पे अलि ।
मधुवन सा सुंदर उसका मन, सावन सी घटा है ,
वर्षा -ऋतु सी हरियाली , ऋतुराज सी छटा है ।
ये बेटियाँ , ये बेटियाँ , ये बेटियाँ , ये बेटियाँ ।।
पिता की मुस्कान मनोहर , माँ की ममता और तमन्ना ,
भ्रात – भगिनी का प्रेम अमोलक, दादा – दादी की अलका ।
मामा – मामी की लाड़ली भांजी , नाना – नानी की तारा,
अपने प्रीतम की वो राधा , सास – ससुर की सहारा ।।
ये बेटियाँ, ये बेटियाँ , ये बेटियाँ , ये बेटियाँ ।।
कवि – सुनील नागर
7509927838