|| ये बारिश की बूंदें ||
ये बारिश की बूंदे है प्यारा ये मौसम।
दीवानों को ज्यादा सताता ये मौसम।।
जमीं पर ज्यों बूंदें टपकती हैं आकर।
ये आकर हंसाती तो जाती रूलाकर।।
ये खामोश बारिश है मदहोश करती।
बिना जाम के ही हैं बेहोश करती।।
तड़पकर सिसककर विरह में हूं जीता।
हमें याद तेरी दिलाता ये मौसम।।
घने मेघ सारे जमीं पर ही आते।
ये प्यासी जमीं को गले से लगाते।।
दीवाने विरह में हैं खुद को सताते।
चली आओ जानम तुम्हें हम बुलाते।।
भटकता ही फिरता जमीं के लिए तू
हमारी तरह है अवारा ये मौसम
कभी चांदनी में बरसता है बादल।
कभी इस धरा को तरसता है बादल।।
निराली मुहब्बत ये करता जमीं को।
मुहब्बत का मतलब बताता सभी को।।
करे प्रेम सच्चा दीवाना सा लगता।
बारिश में भींगा नहाया ये मौसम
— कवि देवेन्द्र शर्मा देव
मीरगंज बरेली
संस्थापक – नवस्वर इंडिया फाउंडेशन