ये बात नहीं करते
नवंबर का गुलाबी जाड़ा शुरु हो चुका था एक सुबह पौ फटने के समय कुछ लोग एक व्रद्ध को मेरे पास ले कर आये मैं उनींदी सी स्थिति में जब उसे देखने गया तो वह मेरे सामने एक स्ट्रेचर पर लेटा हुआ था उसके साथ आए सभी व्यक्ति उसी की तरह लंबी चौड़ी कद काठी वाले थे और मेरे पूंछने पर उन्होंने बताया
‘ ये सुबह से बात नहीं कर रहे हैं ‘
मैंने उसे ठोक बजाकर और आला लगा कर देखा तथा अपने अपने परीक्षण के उपरांत उन लोगों को बताया कि ज़ाहिया तौर पर इनके अंदर कोई ऐसी कमी नहीं नज़र आ रही है जिससे कि ये सुबह से बात क्यों नहीं कर रहे हैं का कारण ज्ञात हो सके तथा अधिक जानकारी के लिए मैंने उन्हें उसकेे दिमाग का सीट स्कैन करवाने की सलाह दे दी ।
मेरी बात से सहमत हो कर वे लोग उसका सीटी स्कैन कराने चले गए तथा लगभग 3 – 4 घंटे बाद जब मैं तैयार होकर अपने ओपीडी में कार्य कर रहा था वे रिपोर्ट के साथ मरीज़ को ले कर मेरे सामने फिर प्रस्तुत हो गये । उसके सिर के सी टी स्कैन की रिपोर्ट नार्मल थी ।अतः मैंने उनसे पूछा अब हालत कैसी है ? उन्होंने बताया
‘ अभी भी वो उसी स्थिति में है और बात नहीं कर रहे हैं ‘
यह सुनकर मैं उसका पुनर्निरीक्षण करने के उद्देश्य से उसके पास पहुंच गया , वह यथावत सुबह की स्थिति जैसी मुद्रा में स्ट्रेचर पर शांत लेटा हुआ था तथा दाएं बाएं टुकुर-टुकुर सबको और मुझे ताक रहा था । कुछ सोच कर मैंने उससे प्रश्न किया
‘ आप बात क्यों नहीं कर रहे हैं ?’
मेरे प्रश्न को सुन कर वो चिढ़ कर झुंझलाते स्वरों में उन सबको डांट लगाते हुए बोला
‘ क्या बात करूं मैं ? जिसे देखो सुबह से मेरे पीछे पड़ा है – बोलो – बोलो , बात करो , बात करो ,आखिर क्या बोलूं मैं ! ‘
उसकी यह बात सुनकर मुझे और उसके साथ आये तीमारदारों को हंसी आ गई ।
उसके बोल ही उसके ठीक होने का प्रमाण थे । अपने मरीज़ को ठीक जान कर वे सब हंसी खुशी उसे ले कर चले गये ।
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एक बार पूस माह के कड़कड़ाते जाड़े की कोहरे से घिरी मध्य रात्रि में कुछ लोग एक व्रद्ध को लेकर मेरे पास आये और उन्होंने बताया
‘ शाम से ये बात नहीं कर रहे हैं ‘
उसका परीक्षण करके मैंने उन्हें बताया की इनका ब्लड प्रेशर बहुत अधिक बढ़ गया है और सम्भवतः दिमाग की नसें सिकुड़ने या फट जाने के फलस्वरूप ये बेहोशी में चले गये हैं । इलाज के दौरान उनकी जान के खतरे को उन्हें समझाते हुए उसकी हालत के अनुरूप उसका प्राथमिक उपचार शुरू करवा कर मैं आ गया । अगले दिन सुबह जब मैं राउंड पर पहुंचा तो वह बुजुर्ग अपने बिस्तर पर पूरे होशोहवास में बैठे नाश्ता कर रहे थे । मैंने उनके साथ आये तीमारदारों से मरीज़ का सी टी स्कैन तथा खून की कुछ अन्य जांचे करवाने के लिये कहा तो वे समवेत स्वरों में बोल उठे
‘ डॉक्टर साहब अब ये बात कर ले रहे हैं , ये छियानबे साल के हो चुके हैं , इस उम्र में कहीं कोई जांच कराता है , अब आप तो फटा फट कुछ गोलियां लिख दो , हम इन्हें वापस गांव ले जा रहे हैं ।’
शायद वे उनके ठीक होने की उम्मीद लेकर नहीं आए थे ।
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एक बार हृदयाघात से पीड़ित एक रोगी के तीमारदारों की भीड़ देख कर मैंने उन्हें संख्या कम करने और मरीज़ के पास भीड़ जुटने के संभावित खतरों को समझाते हुए उन्हें वहां से हटवा दिया । मेरी चेतावनी भरी बातें सुनने के कुछ देर बाद वही बेचैन भीड़ मेरे पास आ कर जम गई और उनमें से कुछ लोग मुझसे बोले
‘ डॉक्टर साहब आप की सभी बातें सही है लेकिन हम लोग इतनी दूर से अपने मरीज़ को देखने आए हैं पर वो हमसे बात नहीं कर रहे हैं । ‘
मैंने उन्हें बताया कि उनके मरीज़ को आराम दिलाने के लिये उसे नींद का इंजेक्शन देकर सुलाया गया है , किसी को उनसे मिलने के लिये मनाही है ,आप कृपया उन्हें सोने दें , इसी में उनकी भलाई है । तब कहीं जाकर बड़ी मुश्किल से मैं उन्हें शांत एवम सन्तुष्ट कर सका ।
गम्भीर रोगियों के करीब उसके हितैषियों की उतावली भीड़ न केवल उसके चिकित्सीय कार्य में बाधक होती है वरन चिकित्सक के निर्णयों को भी प्रभावित करती है । चाहे हारी हुई लड़ाई क्यूं न लड़ी जा रही हो और ठीक होने का फैसला ईश्वर के हाथों में हो , जीवन मरण की स्थितियों से संघर्ष करते रोगीयों के उपचार में लगे सभी चिकित्सक रोगी की अन्तिम सांसों तक उन्हें ठीक करने की उम्मीद लिये अपनी पूरी ईमानदारी से अपने कार्य में लगे रहते हैं । ऐसे में जब उन्हें तीमारदारों का विश्वास और सहयोग मिल जाये तो सफल नतीज़े प्राप्त करने में ईश्वर भी मदद करता है ।
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एक बार किसी सुहावनी शाम को रिश्तेदारों की एक भीड़ एक नवविवाहिता को मेरे पास ले कर आई और बताया
‘ पिछले कुछ घण्टों से ये बात नहीं कर रहीं हैं ‘
मैंने देखा वो ज़ोर से आँखे मींचे , होंठ भींचे , और अपने शरीर को अकड़ा कर चुपचाप बैठी हुई थी । वो किसी से बात करने की मनःस्थिति में नहीं थी और न ही उसने मेरे किसी प्रश्न का उत्तर दिया । उसका यह व्यवहार उसकी मानसिक तनावपूर्ण स्थिति को दर्शा रहा था । मनोचिकित्सा द्वारा उसको उपचार देने के प्रयास में मैंने उसे रिश्तेदारों की भीड़ से अलग कर के अपनी ओर से पहल करते हुए उससे वार्तालाप शुरू किया , फिर करीब चालीस मिनट तक उसे समझाने और बात करने के बाद वो कुछ ढीली पड़ी और धीरे धीरे उसने पहले कुछ इशारों में फिर लिख लिख कर फिर फुसफुसाते हुए कुछ बताया जिसके अनुसार हाल ही में जिस व्यक्ति से उसकी शादी हुई है वो उसे बेहद नापसंद है , यहां तक कि वो अब उसके साथ जीवन बिताने के बजाए मर जाना पसंद करे गी ।
मैने देखा वो वास्तव में किसी फूल की तरह कोमल और अप्रतिम सुंदर थी , साथ ही उसका पति काला भुजंग , रोडरोलर सदृश बाहर रिश्तेदारों की भीड़ का अंग बना खड़ा था । उसके मन की बात को समझ कर उसके रिश्तेदारों को अलग बुला कर जब मैंने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया तो वे बोले
‘ डॉक्टर साहब हमने तो लड़की ब्याह दी अब ये चाहे मरे चाहे जिये हम ये रिश्ता नहीं तुड़वाने जा रहे ! ‘
वे किसी भी परिस्थिति में उस युवती के जीवन मरण की इस समस्या के हल में उसका साथ नहीं देने जा रहे थे ।
मैं सोच रहा था कि अब मुझे उसको उस हद तक मानसिक अवसाद दूर करने वाली तथा उसकी तार्किक सोच को संज्ञाशून्य करने वाली दवाईयां लंम्बे समय तक देनी हों गी जबतक समय बीतने के साथ साथ वो यह न समझ ले कि ज़िन्दगी बिताने के लिये जीवन साथी की तन की सुंदरता से बड़ी बात मन की सुंदरता होती है । ये दवाइयां कुछ हद तक उसे अपने जीवन साथी को अपनाने में सहायक सिध्द हो सकती थीं ।
अक्सर लोग अपने विचारों , कल्पनाओं और मनोभावों को व्यक्त करने के लिये मौखिक रूप से अपनी बात कहने के लिए ध्वनि का प्रयोग करने के बजाय मौन रह कर अपनी भावनाओं , व्यवहारिक इशारों , नयनों की अथवा लिखित भाषा का उपयोग करते हैं , जिन्हें किसी चिकित्सक के लिए समझना चुनौतीपूर्ण हो जाता है । एक मौन अनेक प्रश्नों पर भारी पड़ सकता है ।
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एक बार एक दंपत्ति मुझे दिखाने आए , अपने पति को उसकी पत्नी ने मेरे सामने मरीज़ वाले स्टूल पर बैठाकर उसकी तकलीफों की एक लंबी चौड़ी फेरहिस्त मेरे सामने बैठ कर बोलना शुरू की
‘ डॉक्टर साहब ये बहुत कमज़ोर हो गये हैं , किसी काम को करने में इनका मन नहीं लगता है , हर समय थके थके से रहते हैं , दुबले और चिड़चिड़े होते जा रहे हैं ………’
इस बीच उसके पति ने उसे बीच में रोक कर कुछ बताना चाहा तो उसने उसे डपट कर
‘ तुम चुप रहो जी , मैं बताती हूँ ‘
कह कर उसे शान्त कर दिया । वह लगातार , निर्बाध , तीव्र गति से और अचिंतित रूप से कुछ न कुछ बोले चली जा रही थी । उसकी बातों के बीच में उसे रोक कर कुछ कह पाना मेरे लिये भी मुश्किल था । जब वो लगातार बोले चली जा रही थी मैंने उसे निष्क्रिय ध्यान से सुनते हुए उसके पति की चिकित्सीय रिपोर्ट्स को सक्रिय ध्यान लगा कर समझ लिया था ।
जैसे ही वो अपने बोलने के बीच में कुछ सोचने और सांसें लेने के लिए रुकी मैंने उसे संक्षेप में बताया
‘ आपके पति की ब्लड शुगर 400 – 500 तक बढ़ी रहती है मैं दवा लिख रहा हूं , शुगर नियंत्रित होने से इन्हें आराम मिल जाये गा ‘
फिर पर्चा लिख कर उसे दे दिया । उस समय उसका पति शायद मुझसे कुछ कहना चाह रहा था पर वो उसे उठा कर लगभग घसीटते हुए बाहर ले जाने लगी फिर तभी पलट कर उसने अप्रत्याशित रूप से कुछ झिझकते हुए मुझसे कहा
‘ डाक्टर साहब इधर कुछ महीनों से ये मुझसे बात भी नहीं करते हैं , इसके लिये भी कोई दवा लिख दीजिए ‘
मैंने मन ही मन उससे कहना चाहा कि अगर तुम लगातार ऐसे ही बोलती रहो गी और बीच में उसे बोलने का मौका नहीं दो गी तो वो तुम्हारे सामने कैसे बोल सके गा !
पर यह न कहते हुए मैंने उससे अपनी वही पुरानी ज्ञान की बात दोहरा दी
‘ पहले आप इनकी शुगर के नियंत्रण पर ध्यान दिजिये बाकी बातें बाद में ठीक हो जाएं गी ‘
जब वो चली गयी तो मैं सोचने लगा जो बात वो कहना चाह रही थी क्या वही मैं समझ सका और जो मैं कह रहा था , क्या वही वो समझ सकी ! खैर उन बातों बातों में जिसे जो भी अर्थ समझ आया हो , मैं जानता था कि चिकित्सीय दृष्टिकोण से मैंने उसे सही सलाह दी थी ।