” ये बातें “
“तीनों पहर पचता भोजन भरे प्लेट का,
दर्द बढ़ा देती है बातें सबके पेट का,
पचती नही पेट में जो रह गयीं,
नींद तभी रातों को,
किसी से जब कह गयीं,
बातों ही बातों में घर उजड़ जाते हैं,
पल की तो छोड़ो लोग घंटों बतियाते हैं,
औरों के घरों में कान खुद लगाते हैं,
दोष बेजान दीवारों पर मढ़ जाते हैं,
बातें इक दुजे को जाकर बताते हैं,
बातों के होते हैं पाँव समझाते हैं,
बातों से कभी लोग दिल में उतरते,
बातों से ही कभी दिल से उतरते हैं,
बातें लोगो की नीयत दिखाती हैं,
बातें ही व्यक्ति को जीवन सिखाती हैं,
बातें ही फूलों की बगिया सजाती हैं,
बातें ही काँटों के बिस्तर लगाती हैं,
बातें ही इंसानों को,
पशुओं से भिन्न बनाती हैं,
बातें ही हमारे संस्कार दिखाती हैं,
बातें ही हमें बेहतर या बद्द्तर बनाती हैं “