ये बरसात ही है
घिरते काले मेघ
झूमे विटप
धरा मुस्कराई
पात-पात पर यौवन
ले रहा है अंगड़ाई
नवजीवन का सृजन
करती बरसात
धुले-धुले लगे जलजात
कृषक नाचे
बजी घर शहनाई
कृषक पत्नी की चूनर
खेत में लहराई
हवा नदी झरने बह चले
हौले-हौले बलखाते
ये बरसात ही है
जो जीवन को पूर्ण करती है
कानन हरे
पुष्पों से बगीचे भरे
कुएँ झील सरोवर बावड़ी
कबसे थे इंतजार में
आए जोर की बरसात
और उनके दिन फिरे
सजीले मेघ
बरसते मूसलाधार
लाते हैं बहार
निखरता प्यार
धरा और गगन का।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक