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2 Jan 2021 · 1 min read

#छह दोहे एक कुंडलिया

#श्रेष्ठ विचार #मनुज जीवन साकार

पीर नहीं मरहम बनो,मिले तभी जयकार।
जीत दिला हारे अगर,सदा रहे उपकार।।//1//

हार हुई ये दोष निज,करना समझ सुधार।
दोष दिया गर और को,कायर सरिस विचार।।//2//

मुकुर तोड़ कर देखिए,यूँ बिखरा हूँ आज।
पत्थर जैसे उर लगे , झूठे तेरे काज।।//3//

बनिए सबसे अलहदा,रखिये ऊँची सोच।
दंभ कभी मत कीजिये,प्रेम भरी रख लोच।।//4//

हृदय लगा मत छोड़िए,रहना हरपल साथ।
स्वीकारें रब प्रार्थना,जोड़ो जब दो हाथ।।//5//

प्रीतम स्थायी कुछ नहीं,माया भ्रम का खेल।
समता लेकर खेलिए,बीज कभी थी बेल।।//6//

#कुंडलिया छंद

रचना रब की श्रेष्ठ है,मनुज धरा पर एक।
स्वार्थ लिए नीचा हुआ,भूल परमार्थ नेक।।
भूल परमार्थ नेक,दंभ में जीवन जीता।
परहित समझे नाज़,वही सच समझे गीता।
सुन प्रीतम की बात,जाति ना भुजबल रखना।
शक्ति शील सौंदर्य,युक्त अतिउत्तम रचना।

#सर्वाधिकार सुरक्षित रचना??
#आर.एस.’प्रीतम’

Language: Hindi
2 Likes · 301 Views
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