ये दो बूंद अश्रु मेरे…..
ये दो बूंद अश्रु मेरे…..
ये दो बूंद” अश्रु ” मेरे..
थाती समझ रख लो जिया में..
या बिखेर दो किसी” चिता” मे..
जहा ठंडी पड़ी राखें शोला बनने को तड़पे ..
ज्यों- ज्यों दहकेगी ,लपकेंगी लपटे …
त्यों- त्यों बन आहुति तेरी प्यास बुझाएंगे..
चटकेएंगे, छिटकेंगे.. दहकेंगे
सुलगती, सिसकती छोड़ के सबको ..तब.. हाय!
धधकती, दहकती लपटो से “जी” भर “होली” खेलेंगे हम…. ये दो बूंद अश्रु मेरे…..
पं अंजू पांडेय “अश्रु “