ये दिल – बुजुर्गों को समर्पित एक कविता
चेहरे पर झुरिया है सिर सपाट है
आदत से मजबूर है ये दिल
हर वैलेन्टाइन डे पर बिखर जाता है ये दिल
बीवी का पेहरा है दरवाजे पर ताला है
खिडकी रोशनदान बंद हैं
फिर भी हर वेलेंटाइन डे पर
मचल जाता है ये दिल
हर आहट पर याद आती हैं
कालेज की वो छोरियां
तालाब का किनारा और गंगाराम की वो पानीपूरिया
क्या करे हर वैलेन्टाइन डे
पर खिसक जाता है ये दिल
अब तो सपना है फिर से सपना को देखना
वो है उत्तरप्रदेश में तो मैं मध्य प्रदेश में
फिर भी हर वैलेन्टाइन डे पर
उछल जाता है ये दिल
ऐ दिले नादां क्यो बहकता है उम्र के पढाव पे
अब न कोई सपना है न कोई अपना है
फिर भी हर वैलेन्टाइन डे पर
कसमसा कर रह जाता है ये दिल
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल