ये दिल्ली की सर्दी, और तुम्हारी यादों की गर्मी
ये दिल्ली की सर्दी
ये जनवरी का कुहरा
कुछ रजाई कंबल का आसरा,
कुछ तुम्हारी यादों की गर्मी।
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घर के भीतर तक पसरती
ये घटा, ये छटा, तमस पटापटा,
दिन में अंधेरा अटपटा,
छतों पर जमता कश्मीर-सा पानी
हाथ डरते धोने से,
बदन डरता नहाने से
ये दिल्ली की सर्दी
कुछ तुम्हारी यादों की गर्मी।
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कहाँ शिमला श्रीनगर,
दार्जिलिंग नैनीताल,
कहांँ औली चमोली,
कहाँ मंसूरी-उत्तरकाशी,
यमुना में जमता,
झागी रसायनी पानी_
ये दिल्ली की सर्दी
कुछ तुम्हारी यादों की गर्मी।
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न बर्फानी श्रीनगर-सी धूप मिले
न ठंडी मंसूरी का सुहानापन,
न कौसानी-सा हिमालय दर्शन
न दार्जिलिंग-सी खुली हवा
ढकी सड़कें प्रदूषण से
लाखों कारों से धुँआ-धुँआ
घर-घर में घुसती धुँधली आप़फ़त
फेफड़ों में जमती कालिख
फिर भी जारी नित भागम-भाग
कहीं दाल रोटी रोजी की,
कहीं अकूत दौलत शानो-शौकत की_
दिन-ब-दिन बढ़ती मुसीबत,
आदमी से आदमी की,
ये दिल्ली की सर्दी
कुछ तुम्हारी यादों की गर्मी।