ये तितलियाँ नहीं होतीं
भरी फूलों से अगर डालियाँ नहीं होतीं
तुम्हारे बाग में ये तितलियाँ नहीं होतीं
हवा-पानी में अगर यारियाँ नहीं होतीं
जिंदा पानी में कभी मछलियाँ नहीं होतीं
कटे हैं जब से पेड़ और जल गया जंगल
पड़ा है सूखा कभी बदलियाँ नहीं होतीं
झुका रहता है हमेशा कभी नहीं उठता
गरीबों के बदन में पसलियाँ नहीं होतीं
बँधी है डोरी कोई खींचकर नचाता है
कहा ये किसने कि कठपुतलियाँ नहीं होती
उजाला फैला है दुनिया में बदौलत जिसकी
उसी सूरज के घर में बिजलियाँ नहीं होतीं
मिला जो निकला बेईमान तब समझ पाया
यहाँ आमों में अभी गुठलियाँ नहीं होतीं
भटकता रहता बियाबान में कहीं ‘संजय’
बड़ों के हाथों अगर अँगुलियाँ नहीं होतीं