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2 Aug 2019 · 1 min read

ये तजुर्बा कुछ और है।

चाहें सारा जहां छान लो,ये तजुर्बा कुछ और है
सामने ख़ुदा है,मगर दिल ने कहा कुछ और है।

ये नोबत ही तो है,जो चेहरे बदल देती है
कल के किसी खूब की,आज अदा कुछ और है।

क्यूं ढकते है वो, हिजाब से अपने जख्मों को
हरक़त तो जनाब की, करती बयां कुछ और है।

कल्ब की ये उदास जमीं,जो भीगी है बहुत
के रात भर सोने का,ये बहाना कुछ और है।

क्या इबादत,क्या शराफत,सब है गीर्दाब में
अब यकीन है,तकदीर का रवैया कुछ और है।

आदमी का ये क्या हाल,के सब मजबूर यहां
चाहत की हथेली पर,ये इंसा कुछ और है।

फरेबी बातें यहां कितनी है, कितनी नापे
तर्स के शूल पर “मणि”ये जमना कुछ और है।

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