ये जो हैं सड़कों पर लेटे
करते हैं जो रोज किसानी।
है इनकी भी अजब कहानी।।
आज सड़क पर डाले डेरा।
छाया है घनघोर अँधेरा।।
जो निज तन से भू को सींचे।
आज पड़े हैं भू पर नीचे।।
सोचो इनका त्याग विचारो।
जीते जी इनको ना मारो।।
सूरज को जो रोज छकाते।
मेघराज भी डरा न पाते।।
उनके दम को तोल रही है।
राजनीति यह बोल रही है।।
ये जो हैं सड़कों पर लेटे।
हैं ना भारत मां के बेटे।।
ना ये करते कभी किसानी।
हो ना सकते हिन्दुस्तानी।।
सुनकर इनकी निर्मम भाषा।
टूट गई अब मेरी आशा।।
“जटा” करेंगे ये मनमानी।
बचा नहीं आँखों में पानी।।
जटाशंकर”जटा”
२२-०१-२०२१