#रुबाइयाँ//ये जीवन समर लड़ोगे
अगुआ होकर दिल से प्यारे , हर दिल से प्यार करोगे।
मन के पुष्कर में सावन के , बादल तैयार करोगे।।
बस्ती-बस्ती नाम तुम्हारा , अपनेपन से तब होगा;
सच्चाई के आईने से , जब आँखें चार करोगे।
ताल नयी हो चाल नयी हो , डर-सागर पार करोगे।
रीत वही हो जीत कहीं हो , सुख तीव्र पुकार करोगे।
लीक ज़ुदा हो हृदय फ़िदा हो , हाल बने दीवानों सा;
पावक पथ में पाँव जलाए , चलना साकार करोगे।
अक्षि-अक्षि तुम स्वप्न जगाओ , फ़न आशा जोश भरोगे।
अनुकूल बना हवा शहर की , दीपक बन होश भरोगे।
साँस सुधा में शब्द डुबाकर , जन मन का ख़ार हटाना;
नेक कर्म की स्नेह सुरा से , ताक़त आगोश भरोगे।
सूख रही मन ताल तलैया , हल जल उद्गार भरोगे।
उम्मीदी झरना फूट पड़े , मन हीन विचार हरोगे।
तभी महामानव कहलाओ , सबके मन में छा जाओ;
ब्रह्मास्त्र ज्ञान पाकर प्रीतम , ये जीवन समर लड़ोगे।
#आर.एस.”प्रीतम”